हर एक के तबीयत के, मुताबिक नहीं हूँ, कड़वा जरूर हूँ , मगर मुनाफिक नहीं हूँ तक़दीर के लिखे पर कभी शिकायत ना कर ऐ इंशा , तू इतना समझदार नहीं, कि रब के इरादे को समझ सकें गुजर जाएगा ये दौर भी जरा सब्र तो रखिए जब खुशी नहीं ठहरी तो ग़म की क्या औकात है ।